वाराणसी में घूमने की 10 जगह / Varansi Me Ghumne ki 10 Jagah - Trip With Ayushi वाराणसी में घूमने की 10 जगह / Varansi Me Ghumne ki 10 Jagah - Trip With Ayushi

वाराणसी में घूमने की 10 जगह / Varansi Me Ghumne ki 10 Jagah

न्यू विश्वनाथ मंदिर /New Viswanath Tempal

Varansi Me Ghumne ki 10 Jagah मे से विश्वनाथ मंदिर सबसे प्रसिद्ध जगह है यह मंदिर पवित्र नदी गंगा के पश्चिमी तट पर स्थित है, और बारह ज्योतिर्लिंगस में से एक है, जो शिवमेटल के सबसे पवित्र हैं।

काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। यह भारत के उत्तर प्रदेश के प्राचीन शहर वाराणसी के विश्वनाथ गली में स्थित है। यह हिंदुओं के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है औरभगवान शिव  के बारह ज्योतिर्लिंग   मंदिरों में से एक है। यह मंदिर पिछले कई हजारों सालों से पवित्र

काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। यह भारत के उत्तर प्रदेश के प्राचीन शहर वाराणसी के विश्वनाथ गली में स्थित है। यह हिंदुओं के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है औरभगवान शिव  के बारह ज्योतिर्लिंग   मंदिरों में से एक है। यह मंदिर पिछले कई हजारों सालों से पवित्र  के पश्चिमी तट पर स्थित है। मंदिर के मुख्य देवता को श्री विश्वनाथ और विश्वेश्वर के नाम से जाना जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ब्रह्मांड के शासक है। वाराणसी शहर को काशी भी कहा जाता है। इसलिए मंदिर को काशी विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्‍नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।[ मंदिर को हिंदू शास्त्रों द्वारा शैव संस्कृति में पूजा का एक केंद्रीय हिस्सा माना जाता है।

पुराना विश्वनाथ मंदिर |old vishwnath Tempal

काशी विश्वनाथ मंदिर अनादि काल से शैव दर्शन का केंद्र रहा है. इसे समय-समय पर कई मुस्लिम शासकों द्वारा ध्वस्त किया गया और उनमें अंतिम शासक औरंगजेब है. मंदिर की वर्तमान संरचना महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा वर्ष 1780 में करवाई गई थी |वाराणसी में देश से ही नहीं बल्कि विदेश से भी लोग यहां की संस्कृति कोदेखने और समझने के लिए आते हैं काशी विश्वनाथ मंदिर दुनिया के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है ! काशी के बारे में कहा जाता है कि यह नगरी भगवान शिव की त्रिशूल पर खड़ी है|

संकट मोचन हनुमान मंदिर /sankat mochan hanumanTempal

Varansi Me Ghumne ki 10 Jagah मे से संकट मोचन हनुमान मंदिर हिन्दू भगवान हनुमान के पवित्र मंदिरों में से एक हैं।यह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय कॆ नजदीक दुर्गा मंदिर और नयॆ विश्वनाथ मंदिर के रास्ते में स्थित हैं। संकट मोचन का अर्थ है परेशानियों अथवा दुखों को हरने वाला। इस मंदिर की रचना बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के स्थापक श्री मदन मोहन मालवीय जी द्वारा की गई है । यहाँ हनुमान जन्मोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, इस दौरान एक विशेष शोभा यात्रा निकाली जाती है जो दुर्गाकुंड से सटे ऐतिहासिक दुर्गा मंदिर से लेकर संकट मोचन तक चलायी जाती है। भगवान हनुमान को प्रसाद के रूप में शुद्ध घी के बेसन के लड्डू चढ़ाये जाते हैं। भगवान हनुमान के गले में गेंदे ऐवं तुलसी की माला सुशोभित रहती हैं। इस मंदिर की एक अद्भुत विशेषता यह हैं कि भगवान हनुमान की मूर्ति की स्थापना इस प्रकार हुई हैं कि वह भगवान राम की ओर ही देख रहे हैं,ऐवं श्री राम चन्द्र जी के ठीक सीध में संकट मोचन महराज का विग्रह है , जिनकी वे निःस्वार्थ श्रद्धा से पूजा किया करते थे। भगवान हनुमान की मूर्ति की विशेषता यह भी है कि मूर्ति मिट्टी की बनी है।

दुर्गा माता मंदिर /mata durga Tempal

दुर्गा मंदिर काशी के पुरातन मंदिरॊ मॆ सॆ एक है। इस मंदिर का उल्लॆख ” काशी खंड” मॆ भी मिलता है। यह मंदिर वाराणसी कैन्ट से लगभग 5 कि॰मी॰ की दूरी पर है। लाल पत्थरों से बने अति भव्य इस मंदिर के एक तरफ “दुर्गा कुंड” है।

तुलसी मानस मंदिर /Tulsi Mansh Tempal

तुलसी मानस मंदिर ( हिन्दी : तुलसी मानस मंदिर) पवित्र शहर वाराणसी में सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है । इस मंदिर का हिंदू धर्म में बहुत ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है क्योंकि प्राचीन हिंदू महाकाव्य रामचरितमानस मूल रूप से 16 वीं शताब्दी (लगभग 1532-1623) में हिंदू कवि-संत, सुधारक और दार्शनिक गोस्वामी तुलसीदास द्वारा इसी स्थान पर लिखा गया था। 1964 में सुरेका परिवार ने उसी स्थान पर एक मंदिर का निर्माण कराया, जहां गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस लिखा था । 

सारनाथ मंदिर /Sarnath Tempal

दलाई लामा के भारत आने से पहले 1955 में भारत में स्थापित सबसे पुराना तिब्बती मंदिर है ।  मिट्टी से बनी विशालकाय बुद्ध प्रतिमा है।  कई अन्य छोटी मूर्तियाँ और अन्य कलाकृतियाँ हैं।  यह एक सुंदर शांत जगह है और बहुत दयालु और मैत्रीपूर्ण लामाओं द्वारा प्रबंधित किया जाता है।

यह एक बाहत ही शांत जगह है । चायनीज मंदिर से इसकी दूरी महज 500 मीटर है।  सारनाथ संग्रहालय के लगभग 2 किमी की दूरी पर स्थित यह स्थान दिव्य शांति प्रदान करता है।

अस्सी घाट /Assi Ghat

अस्सी घाट वाराणसी का सबसे दक्षिणी घाट है। वाराणसी आने वाले अधिकांश पर्यटकों के लिए, यह एक ऐसी जगह के रूप में जाना जाता है जहां लंबे समय तक विदेशी छात्र, शोधकर्ता और पर्यटक रहते हैं। सुबह-ए-बनारस की मेजबानी के साथ, अस्सी घाट गंगा नदी का एक शानदार दृश्य प्रदान करता है। वाराणसी आने वाले अधिकांश पर्यटकों के लिए, यह एक ऐसी जगह के रूप में जाना जाता है जहां लंबे समय तक विदेशी छात्र, शोधकर्ता और पर्यटक रहते हैं। अस्सी घाट उन घाटों में से एक है जहां अक्सर मनोरंजन और त्योहारों के दौरान जाया जाता है। आम दिनों में सुबह हर घंटे लगभग 300 लोग आते हैं, और त्योहार के दिनों में प्रति घंटे 2500 लोग आते हैं। सामान्य दिनों में घाट पर आने वाले अधिकांश लोग पास के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र होते हैं ।

भारत माता मंदिर /Bhart Mata Mamdir

भारत माता मन्दिर महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ (वाराणसी) के प्रांगण में है। इसका निर्माण डाक्टर शिवप्रसाद गुप्त ने कराया और उदघाटन सन 1936 में गांधीजी द्वारा किया गया। इस मन्दिर में किसी देवी-देवता का कोई चित्र या प्रतिमा नहीं है बल्कि संगमरमर पर उकेरी गई अविभाजित भारत का त्रिआयामी भौगोलिक मानचित्र है। इस मानचित्र में पर्वत, पठार, नदियाँ और सागर सभी को बखुबी दर्शाया गया है

देवदरी झरना /devdari waterfall

राजदारी, देवदारी वॉटरफॉल – यूपी के चंदौली जिले में मौजूद राजदारी और देवदारी वॉटरफॉल करीब 65 मीटर की ऊंचाई से गिरते हैं. शीतल जल के ये झरने ना सिर्फ आपके तनाव को दूर कर देते हैं बल्कि यहां पास की वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरी आपको घूमने का अलग अनुभव भी देती है| चंद्रपुर वन्यजीव अभयारण्य में राजधारी और देवदारी झरने पाए जाते

चुनार का किला /chunar ka kila

मिर्जापुर के चुनार में स्थित चुनार किला कैमूर पर्वतमाला की उत्तरी दिशा में स्थित है। यह गंगा नदी के दक्षिणी किनारे पर बसा है। यह दुर्ग गंगा नदी के ठीक किनारे पर स्थित है। यह किला एक समय हिन्दू शक्ति का केंद्र था। हिंदू काल के भवनों के अवशेष अभी तक इस किले में हैं, जिनमें महत्वपूर्ण चित्र अंकित हैं। इस किले में आदि-विक्रमादित्य का बनवाया हुआ भतृहरि मंदिर है जिसमें उनकी समाधि है। किले में मुगलों के मकबरे भी हैं| 18 अप्रैल सन 1924 को मिर्जापुर के तत्कालीन कलक्टर द्वारा दुर्ग पर लगाये एक शिलापत्र पर उत्कीर्ण विवरण के अनुसार उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य के बाद इस किले पर 1141 से 1191 ई. तक पृथ्वीराज चौहान, 1198 में शहाबुद्दीन गौरी, 1333 से स्वामीराज, 1445 से जौनपुर के मुहम्मदशाह शर्की, 1512 से सिकन्दर शाह लोदी, 1529 से बाबर, 1530 से शेरशाहसूरी और 1536 से हुमायूं आदि शासकों का अधिपत्य रहा है। शेरशाह सूरी से हुए युद्ध में हुमायूं ने इसी किले में शरण ली थी।

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